संस्कृत भाषा के महत्त्व को दृष्टि में रखते हुए तथा राष्ट्र की संस्कृति, सभ्यता, भाषा एवं साहित्य के संरक्षण और विकास के प्रति अपने दायित्व को समझते हुए देश व राज्य की सरकारें राष्ट्रीय अखण्डता व भाषायी एकता की प्रतीक संस्कृत भाषा के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के लिए अधिकाधिक प्रयत्नशील हैं।
भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली होने के कारण दिल्ली सरकार के समस्त चिन्तन का प्रभाव सम्पूर्ण भारत वर्ष पर ही नहीं, अपितु समस्त विश्व पर पड़ता है। राजधानी के इस गरिमामय महत्त्व एवम् उपर्युक्त बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए दिल्ली सरकार ने संस्कृत भाषा एवं अन्य प्राचीन भाषाओं में सन्निहित वेद, योग, अध्यात्म, चिकित्सा, साहित्य, संगीत, कला, पुरातत्त्व, वास्तु, सैन्य, गणित, भौतिक, रसायन, कृषि, भूगर्भ, जल, पर्यावरण, अन्तरिक्ष, ध्वनि, व्याकरण, दर्शन आदि समस्त भारतीय ज्ञान-विज्ञान की शिक्षण-व्यवस्था हेतु व उपर्युक्त उद्देश्यों को पूर्ण करने वाली संस्कृत संस्थाओं को सम्बद्धता प्रदान करने हेतु संस्कृत एवं ज्योतिष के पुरोधा विद्वान्, राष्ट्रिय एवं प्रादेशिक स्तर पर अनेक संस्कृत संस्थाओं के जन्मदाता डा॰ गोस्वामी गिरिधारी लाल शास्त्री की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखने की पवित्र भावना से उनके नाम पर दिनांक 22-04-2006 को ‘‘डाॅ॰ गोस्वामी गिरिधारी लाल शास्त्री प्राच्यविद्या-प्रतिष्ठानम्’’ की स्थापना की है, जो संस्कृत के अध्ययन एवं शोधकार्य के प्रचार-प्रसार हेतु निरन्तर प्रयत्नशील है।
दिल्ली सरकार द्वारा राष्ट्रिय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली सरकार (कला संस्कृति एवं भाषा विभाग) दिल्ली सचिवालय नई दिल्ली 110002 की अधिसूचना सं एफ 3(45) दि.सं.अ/2002-2003/1899-1978 दिनांक 03-10-2003 द्वारा अधिसूचित एवं संचालित स्वायत्त संस्था डा॰ गोस्वामी गिरिधारी लाल शास्त्री प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान की स्थापना की गयी है।
(1) संस्कृत भाषा एवं अन्य प्राच्य भारतीय भाषाओं में सन्निहित, तन्त्र, मन्त्र, योग, अध्यात्म, चिकित्सा, साहित्य, संगीत, कला, पुरातत्त्व, अभिलेख, वास्तु, सैन्य, गणित, संगणक, भौतिक, रसायन, कृषि, पर्यटन, वन, प्राणिविज्ञान, भूगर्भ, जल, पर्यावरण, काव्यशास्त्र, मनोविज्ञान, दर्शन, सूचना-प्रौद्योगिकी, अन्तरिक्ष, विद्युत्, धातु, ध्वनि, व्याकरण, साहित्य आदि समस्त ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकिशिक्षादि समस्त प्राच्य-विद्याओं के अध्ययन एवं अध्यापन, शिक्षण-प्रशिक्षण हेतु परीक्षाओं का संचालन करना तथा तत्सम्बन्धी संकायों की स्थापना करना एवं शिक्षण-व्यवस्था करना। इन उद्देश्यों को पूर्ण करने वाली संस्थाओं को सम्बद्धता प्रदान करना।
(2) प्राच्य एवं आधुनिक वैज्ञानिक एवं अन्य विद्याओं का वैज्ञानिक पद्धति से अध्ययन-अध्यापन करना। साथ ही परम्परागत संस्कृत-पाठशालाओं के पाठ्यक्रमानुसार परीक्षाओं की व्यवस्था एवं उनका संचालन करना। उन्हें सम्बद्धता देना।
(3) संस्कृत-शिक्षा की प्राथमिक, माध्यमिक, स्नातक-स्नातकोत्तर, शोध स्तर की परीक्षाओं को चलाना तथा प्रमाणपत्र एवं उपाधि प्रदान करना। उनकी मान्यता के लिए सभी विश्वविद्यालयों एवं भारत सरकार एवं प्रादेशिक सरकारों से मान्यता प्राप्त करना, दिल्ली सरकार की सेवाओं में इन परीक्षाओं को प्राथमिकता देना।
(4) सभी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक अध्ययन-अध्यापन एवं प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान देना।
(5) सभी परीक्षाओं के लिए पाठ्यक्रम बनाना एवं तत्सम्बन्धी समस्त सामग्री का लेखन, सम्पादन एवं प्रकाशन करना। इस प्रतिष्ठान के माध्यम से निम्नलिखित परीक्षाएं संचालित होगीं। इन्हीं परीक्षाओं को सम्बद्धता दी जायेगी।
प्रतिष्ठान द्वारा संचालित परीक्षाएँ/उपाधियाँ
(क) प्रथमा (त्रिवर्षीय) मिडिल स्तर
(ख) पूर्वमध्यमा (द्विवर्षीय) दशम कक्षा स्तर
(ग) उत्तरमध्यमा (द्विवर्षीय) द्वादश कक्षा स्तर
(घ) शास्त्री (त्रिवर्षीय) स्नातक स्तर
(ङ) आचार्य (द्विवर्षीय) परास्नातक स्तर
(च) शिक्षा-शास्त्री (एक वर्षीय) बी.एड. स्तर
(छ) शिक्षाचार्य (एक वर्षीय) एम.एड. स्तर
(ज) विद्यावारिधि (द्विवर्षीय) पीएच.डी स्तर
(झ) विद्यावाचस्पति (द्विवर्षीय) डी.लिट्. स्तर
भारतवर्ष में इस प्रकार के सभी संस्थानों में मुख्यतया, इसी रूप में परीक्षाएं एवं पाठ्यक्रम प्रचलित हैं। स्थिति के अनुसार समय-समय पर पाठ्यक्रम परिवर्तित भी हो सकते हैं।
(6) सभी छात्रों के लिए निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु पाठ्य-पुस्तक तैयार करना, उसका सम्पादन व प्रकाशन करना, साथ ही विभिन्न प्रकार के संस्कृत-सन्दर्भ-ग्रन्थों को प्रकाशित करना। तत्सम्बन्धी सन्दर्भ-ग्रन्थों का निर्माण एवं प्रकाशन करना। इस प्रकरण से सम्बन्धित कार्यशालाओं का आयोजन करना।
(7) प्रतिष्ठान के संकायों में पढ़ने वाले छात्रों को छात्रवृत्ति, पुरस्कार, पाठ्यपुस्तकें प्रदान करना, परिस्थिति के अनुसार मेधावी छात्रों को छात्रावास, भोजनादि की व्यवस्था करना। सम्बद्ध संस्कृत-पाठशालाओं के छात्रों को भी उपर्युक्त सुविधाएं प्रदान करना।
(8) प्राच्य एवं अर्वाचीन समस्त साहित्य के ग्रन्थागार के रूप में एक सुसमृद्ध पुस्तकालय की स्थापना करना।